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Krishna Jaljhulni Ekadashi: करौली में आज, 3 सितंबर को जलझूलनी एकादशी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म में इस तिथि का विशेष महत्व है. कृष्ण मंदिरों में सुबह से ही भक्ति और उल्लास का माहौल है.
मान्यता है कि जो जातक जन्माष्टमी का व्रत करता है और उसके बाद जलझूलनी एकादशी का व्रत रखता है, उसे करोड़ों गुना पुण्य की प्राप्ति होती है. पंडित धीरज उपाध्याय बताते हैं कि इस दिन व्रत रखना अत्यंत आवश्यक है. केवल इस व्रत के माध्यम से जन्माष्टमी का पूर्ण फल प्राप्त होता है.
हिंदू धर्म में इसे परिवर्तनी एकादशी और पदमा एकादशी भी कहा जाता है. शास्त्रों में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है. पंडित धीरज उपाध्याय के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन कुआं पूजन किया था. यह दिन भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है.
कुआं पूजन और शोभायात्रा
परंपरा के अनुसार, कृष्ण मंदिरों में भगवान को डोलों और पालकियों में विराजमान कर नगर भ्रमण के लिए निकाला जाता है. शोभायात्रा के बाद उन्हें किसी पवित्र नदी या जल स्रोत के किनारे ले जाकर विधि-विधान से पूजा की जाती है. इस दौरान भक्तजन भक्ति गीत और मंत्रोच्चारण के साथ उपस्थित रहते हैं.
मान्यता है कि जलझूलनी एकादशी पर भगवान के डोले या पालकी के नीचे से गुजरना अत्यंत शुभ होता है. ऐसा करने से भक्तों को अपार पुण्य और स्वर्ग के द्वार खुलने का लाभ मिलता है. लोग इस अवसर का लाभ लेने के लिए विशेष तैयारी करते हैं और डोले के नीचे से क्रमबद्ध होकर गुजरते हैं.
पारंपरिक महत्व और आस्था
इस एकादशी को परिवर्तनी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु शयन के दौरान अपनी मुद्रा बदलते हैं. भक्तजन इस दिन व्रत करके आस्था और भक्ति प्रकट करते हैं. वार्षिक मेला के दौरान देशभर से लाखों श्रद्धालु करौली में इस पावन अवसर का अनुभव करने आते हैं.