जुगाड़ से बना जहाज, जिसने तकनीक की सीमाएं तोड़ीं
बाढ़ के संकट में बना जीवन रक्षक
बिथान इलाका हर साल बाढ़ की चपेट में आता है. नावों की भारी कमी और संसाधनों की अनुपलब्धता में यह देसी जहाज अब एक बड़ा सहारा बन सकता है. राकेश बताते हैं कि उन्होंने यह काम एक महीने में पूरा किया, और शुरुआत में लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया ,कहा, समय बर्बाद कर रहा है. लेकिन अब वही लोग तारीफ करते नहीं थक रहे. परिवार वालों ने भी पहले खर्च को लेकर नाराज़गी जताई, लेकिन राकेश के संकल्प के आगे सबको चुप होना पड़ा. उनका मानना है कि अगर उन्हें थोड़ी सी आर्थिक और तकनीकी मदद मिले, तो वे ऐसे और कई नवाचार कर सकते हैं, जो समाज के लिए बेहद उपयोगी साबित हों.
बिहार का जुगाड़ नहीं, असली इनोवेशन है ये
राकेश की यह जुगाड़ वाली कहानी यह साबित करती है कि जुगाड़ सिर्फ ‘काम चलाऊ’ तरीका नहीं होता, बल्कि यह भारत के नवाचार की असली पहचान है. जब बड़े-बड़े इंजीनियर करोड़ों खर्च करके समाधान ढूंढने में असफल हो जाते हैं, तब राकेश जैसे युवा चंद हजारों में वह कर दिखाते हैं, जिसे देखकर वैज्ञानिक भी चौंक जाते हैं. बिहार के गांवों में ऐसे कई अनसंग हीरो छिपे हैं, जिनका सही मार्गदर्शन और समर्थन मिले, तो वो तकनीक की दुनिया में क्रांति ला सकते हैं. राकेश पाल का यह पनिया जहाज न सिर्फ देसी जुगाड़ की जीत है, बल्कि यह एक संदेश भी है,प्रतिभा डिग्री की मोहताज नहीं होती.