समस्तीपुर के राकेश पाल ने देसी जुगाड़ से बनाया जलयान


समस्तीपुरः बिहार का नाम सुनते ही लोगों के जहन में शिक्षा, संघर्ष और जुगाड़ तकनीक की एक अलग ही तस्वीर उभरती है. यहां के युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, बस जरूरत होती है सही दिशा और थोड़े सहयोग की. ऐसी ही एक मिसाल बने हैं समस्तीपुर जिले के बिथान प्रखंड के रहने वाले राकेश पाल, जिन्होंने बिना किसी इंजीनियरिंग डिग्री के महज करीब ₹35,000 में पानी में चलने वाला देसी जहाज तैयार कर दिया. बाढ़ से जूझते इस इलाके में राकेश का यह आविष्कार अब उम्मीद की नई नाव बनकर उभरा है, जो न सिर्फ स्थानीय लोगों की मदद करेगा, बल्कि सरकारी सिस्टम को भी आईना दिखा रहा है.

जुगाड़ से बना जहाज, जिसने तकनीक की सीमाएं तोड़ीं

राकेश का पारिवारिक स्थिति बेहद साधारण है. वह पेशे से एक पानी सप्लायर हैं, जो गांव-गांव जाकर लोगों को पानी मुहैया कराते हैं. इसी काम से जो थोड़ी बहुत कमाई होती है, उसी में से पैसा जोड़कर उन्होंने यह देसी जहाज तैयार किया है. लकड़ी से तैयार ढांचा, मोटरसाइकिल के इंजन से चलने वाली मशीन, कबाड़ से खरीदी गई बैठने वाला सीटें और मोटरसाइकिल की चेन से बना स्टीयरिंग सिस्टम, ये सब बताने के लिए काफी है कि राकेश की सोच कितनी व्यावहारिक और अनोखी है. यह नाव पेट्रोल से चलती है और इसमें 6 से 7 लोग आसानी से बैठ सकते हैं. इसकी रफ्तार 40 किमी/घंटा तक है, जो किसी देसी जुगाड़ के लिए बड़ी उपलब्धि है.

बाढ़ के संकट में बना जीवन रक्षक
बिथान इलाका हर साल बाढ़ की चपेट में आता है. नावों की भारी कमी और संसाधनों की अनुपलब्धता में यह देसी जहाज अब एक बड़ा सहारा बन सकता है. राकेश बताते हैं कि उन्होंने यह काम एक महीने में पूरा किया, और शुरुआत में लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया ,कहा, समय बर्बाद कर रहा है. लेकिन अब वही लोग तारीफ करते नहीं थक रहे. परिवार वालों ने भी पहले खर्च को लेकर नाराज़गी जताई, लेकिन राकेश के संकल्प के आगे सबको चुप होना पड़ा. उनका मानना है कि अगर उन्हें थोड़ी सी आर्थिक और तकनीकी मदद मिले, तो वे ऐसे और कई नवाचार कर सकते हैं, जो समाज के लिए बेहद उपयोगी साबित हों.

बिहार का जुगाड़ नहीं, असली इनोवेशन है ये
राकेश की यह जुगाड़ वाली कहानी यह साबित करती है कि जुगाड़ सिर्फ ‘काम चलाऊ’ तरीका नहीं होता, बल्कि यह भारत के नवाचार की असली पहचान है. जब बड़े-बड़े इंजीनियर करोड़ों खर्च करके समाधान ढूंढने में असफल हो जाते हैं, तब राकेश जैसे युवा चंद हजारों में वह कर दिखाते हैं, जिसे देखकर वैज्ञानिक भी चौंक जाते हैं. बिहार के गांवों में ऐसे कई अनसंग हीरो छिपे हैं, जिनका सही मार्गदर्शन और समर्थन मिले, तो वो तकनीक की दुनिया में क्रांति ला सकते हैं. राकेश पाल का यह पनिया जहाज न सिर्फ देसी जुगाड़ की जीत है, बल्कि यह एक संदेश भी है,प्रतिभा डिग्री की मोहताज नहीं होती.



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