Dariya-i-Noor Diamond: दरिया-ए-नूर है कोहिनूर का साथी हीरा, रहस्य बनी हुई है इसकी बांग्लादेश में मौजूदगी, जानें पूरी कहानी


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Dariya-i-Noor Diamond: दरिया-ए-नूर को कोहिनूर का साथी हीरा माना जाता है. यह मुगलों से फारस होते हुए ढाका के नवाब और सोनाली बैंक तक पहुंचा. आज भी बांग्लादेश में इसकी तिजोरी में मौजूदगी रहस्य बनी हुई है.

दरिया-ए-नूर है कोहिनूर का साथी हीरा, रहस्य बनी है इसकी बांग्लादेश में मौजूदगीबांग्लादेश दरिया-ए- नूर हीरे का रहस्य उजागर करने के लिए तैयार है.
Dariya-i-Noor Diamond: दरिया-ए-नूर हीरे को इसके हल्के गुलाबी रंग के कारण अनोखा माना जाता है. दरिया -ए-नूर का फारसी में मतलब प्रकाश का सागर होता है. 1739 तक यह मुगल सम्राटों के स्वामित्व में था. उसी साल नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया और मुगल खजाने पर कब्जा कर लिया, जिसमें दरिया-ए-नूर और कोहिनूर जैसे हीरे भी शामिल थे. फिर यह खजाना फारस ले जाया गया, जहां यह हीरा तब से एक राजवंश से दूसरे राजवंश तक जाता रहा है. 1965 में मुकुट के आभूषणों पर शोध करने वाले कनाडाई शोधकर्ताओं के एक दल के अनुसार यह हीरा मुगल सम्राट शाहजहां के सिंहासन पर जड़े एक बहुत बड़े गुलाबी हीरे का ही हिस्सा हो सकता है. इसका वर्णन फ्रांसीसी जौहरी टैवर्नियर ने 1642 में अपनी डायरी में किया था.

ऐसा लगता है कि इस हीरे को दो भागों में काटा गया था. सबसे बड़ा हिस्सा दरिया-ए-नूर बना और बाकी 60 कैरेट वजन वाला हिस्सा नूर-उल-ऐन बना. नूर-उल-ऐन वर्तमान में एक मुकुट में जड़ा हुआ है जो ईरानी क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है. लेकिन दरिया-ए-नूर किसके पास है यह बहुत बड़ा रहस्य बना हुआ है. लेकिन अब बांग्लादेश इस हीरे का रहस्य उजागर करने के लिए तैयार है. जिसके बारे में माना जाता है कि वह बांग्लादेश के एक बैंक की तिजोरी में रखा है. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने सरकारी बैंक की तिजोरी को खोलने का फैसला किया है. लोगों को हैरानी इस बात पर है कि अगर दरिया-ए-नूर बांग्लादेश के भंडार में है तो वह वहां कैसे पहुंचा? दरिया-ए-नूर की कीमत आज 13 मिलियन डॉलर (लगभग 114.5 करोड़ रुपये) होने की संभावना है.

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दरिया-ए-नूर का इतिहास
बांग्लादेश के बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार 182 कैरेट का दरिया-ए-नूर हीरा आयताकार आकार का है. ऐसा कहा जाता है कि यह हीरा दक्षिण भारत में गोलकुंडा की खदानों से निकाला गया था. ऐसा माना जाता है कि कोहिनूर हीरा भी उन्हीं खदानों से निकला था. कोहिनूर हीरा 105.6 कैरेट का है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार दरिया-ए-नूर को एक सोने के बाजूबंद के बीच में जड़ा गया था, जिसके चारों ओर दस छोटे हीरे जड़े हुए हैं. जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग पांच कैरेट है.

सिखों से अंग्रेजों के पास चले गए
भारत में ब्रिटिश शासकों के एक विश्वसनीय सुनार और जौहरी हैमिल्टन एंड कंपनी के अनुसार दरिया-ए-नूर लंबे समय तक मराठा राजाओं के पास रहा. बाद में हैदराबाद के एक मंत्री नवाब सिराज-उल-मुल्क के परिवार ने इस हीरे को खरीद लिया.दरिया-ए-नूर और कोहिनूर हीरा अंततः पंजाब के शासक रणजीत सिंह के पास पहुंचा. उन्होंने दोनों रत्नों को बाजूबंद के रूप में पहना. सिख शासक की मृत्यु के बाद और हीरों का स्वामित्व बदल गया. 19वीं शताब्दी में वे ब्रिटिश सरकार के हाथों में चले गए. कोहिनूर की तरह दरिया-ए-नूर को भी लाहौर से महारानी विक्टोरिया के पास भेजा गया था. दरअसल अंग्रेजों ने रणजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे दलीप सिंह को हीरे सौंपने के लिए मजबूर किया था.

ढाका के नवाब ने खरीदा था इसे
हालांकि ऐसा कहा जाता है कि दरिया-ए-नूर ब्रिटेन की रानी को प्रभावित नहीं कर पाया. वायसराय लॉर्ड डफरिन और लेडी डफरिन ने 1887 में कलकत्ता के बल्लीगंज स्थित नवाब के घर में इस रत्न को देखा था. अपनी पुस्तक ‘आवर वायसरॉयल लाइफ इन इंडिया’ में लेडी डफरिन ने लिखा, “चपटा हीरा होने के कारण दरिया-ए-नूर हमें ज्यादा आकर्षक नहीं लगा.” ढाका के प्रथम नवाब ख्वाजा अलीमुल्लाह ने 1852 में एक नीलामी में यह हीरा खरीदा था. 1908 में ढाका के नवाब सलीमुल्लाह को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा. उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्तियों से उधार लिया अपनी ढाका की विशाल संपदा, दरिया-ए-नूर और अपने अन्य खजाने को गिरवी रख दिया. इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया से स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान तक, इसके बाद यह हीरा बांग्लादेश के सरकारी सोनाली बैंक तक पहुंच गया. उस समय दरिया-ए-नूर को आखिरी बार देखा गया था. तब से यह रहस्य ही बना हुआ है. इसी नाम का एक और हीरा है जो ईरान की राजधानी तेहरान में है.

क्या बांग्लादेश में है दरिया-ए-नूर?
एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार 1908 के अदालती दस्तावेजों में कहा गया है कि यह हीरा 108 कीमती सामानों के खजाने का हिस्सा था. जिसमें हीरे से जड़ी एक सोने और चांदी की तलवार, मोतियों से जड़ा एक रत्नजड़ित फ्रेम और एक सितारा ब्रोच भी शामिल है. बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार इस तिजोरी को आखिरी बार 1985 में खोला और सत्यापित किया गया था. 2017 में खबरें आयीं कि दरिया-ए-नूर गायब हो गया है. हालांकि सोनाली बैंक के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने हीरा कभी नहीं देखा. आज भी इस बात पर अटकलें लगायी जाती हैं कि क्या यह रत्न तिजोरी में है भी या नहीं.

कब खत्म होगा ये रहस्य
ढाका के नवाब के परपोते ख्वाजा नईम मुराद ने फ्रांसीसी समाचार एजेंसी को बताया कि उन्हें हीरे को देखने की उम्मीद है. सोनाली बैंक के प्रबंध निदेशक शौकत अली खान ने कहा, “तिजोरी सीलबंद है. कई साल पहले एक निरीक्षण दल गहनों की जांच करने आया था, लेकिन उन्होंने उसे कभी खोला ही नहीं. उन्होंने बस तिजोरी वाला दरवाजा खोला था.” उन्होंने बताया कि वह तिजोरी के अंततः खुलने को लेकर उत्सुक हैं. हालांकि, अभी कोई तारीख तय नहीं हुई है. दरिया-ए-नूर का रहस्य खत्म होगा या नहीं, इसके लिए हमें इंतजार करना होगा.

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